Thursday 6 December 2012

Are we really educated or we are just a bunch of "Intelligent Morons?"

Please go through this interesting article and think for a while. 

Are we really "Educated" in true terms or we have just mugged up the knowledge without any relevance to its usage or the real value behind the things we do?

It is a fact that we are politically uneducated. The scholars appearing for this administrative service's entrance interview, with only those answers that will help them score good. 

My concern is, aren't these kind of bureaucrats dangerous for the future of our nation and the generations to come after us?

Now I know, why my state and the nation is the way it is today.

Think about it.

Are you an "Intelligent Moron" or an enlightened and brave soul???

Jharkhand Public Service Commission

Prabhat Khabar Ranchi of JPSC Recruitment Civils 2012-12-06

दूध का दूध पानी का पानी
झारखंड लोक सेवा आयोग इंटरव्यू
त्नपी जोसेफ

कुछ दिन पूर्व प्रतिष्ठित सेवाओं की नियुक्ति के लिए झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) के इंटरव्यू पैनल में बैठने का मौका मिला. पैनल में मेरे अलावा और पांच वरीय पैनलिस्ट और अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ भी थे.

तीन-चार दिन तक अभ्यर्थियों के इंटरव्यू लिये गये. इस दौरान उनकी मानसिकता तथा अन्य पहलूओं का आकलन करने का प्रयास किया गया. इंटरव्यू में सिर्फ एक प्रत्याशी ऐसे थे, जिनकी उम्र तीस वर्ष से कम थी. जहां अधिकत्तम उम्र 44 वर्ष और न्यूनतम 29 वर्ष. अधिकांश विवाहित थे. स्पष्टत: राज्य के प्रतिष्ठित प्रशासनिक/पुलिस सेवाओं में आनेवाले अभ्यर्थी में कोई भी सही मायने में युवा नहीं था. अभ्यर्थियों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी अलग-अलग थी. किसी के पास एमबीए की डिग्री थी, तो कोई इंगलिश लिटरेचर से जुड़ा था, कोई रसायन शास्त्र में पीएचडी था. अधिकांश अभ्यर्थियों ने परीक्षा में खोरठा भाषा, इतिहास एवं लोक प्रशासन तथा श्रम एवं समाज कल्याण विषय रखा था. भूगोल भी एक प्रिय विषय था. उक्त विषय को ही क्यों चुना, यह पूछे जाने पर अधिकांश ने साफ-साफ कहा : इसमें अधिक मार्क्सक मिलते हैं.

पूरे राज्य से अभ्यर्थी आये थे. पलामू प्रमंडल के अभ्यर्थियों की पहली प्राथमिकता पुलिस सेवा थी. पुलिस सेवा क्यों? यह पूछे जाने पर रटा-रटाया जबाव होता था- पुलिस की छवि सुधारने का प्रयास करना है, लोगों के मन में पुलिस के भय को हटाना है. एक अभ्यर्थी तो लेरर का काम छोड़ कर पुलिस अफसर बनना चाहते थे. ये सभी कहते थे कि नक्सली समस्या का समाधान करेंगे. शेष पेज 15 पर
दूध का दूध ..

कुछ ने नक्सली समस्या को सामाजिक-राजनीतिक समस्या बतायी. पुलिस को दबंग होना चाहिए अथवा नहीं, इसके जवाब में कहा गया : सकारात्मक रूप से दबंग होना आवश्यक है. पुलिस सेवा में भर्ती के लिए न्यूतनम उम्र कितनी होनी चाहिए,यह पूछने पर जवाब था : न बहुत ज्यादा न, बहुत कम. पुलिस में भ्रष्टाचार फैला है? पूछने पर जवाब था : यह कुछ व्यक्तियों की करतूत. अभ्यर्थियों के जवाब से लगा कि ये उनके अपने विचार नहीं हैं, बल्कि कोचिंग इंस्टीट्यूट में उन्हें यही सिखाया गया था. एक महिला अभ्यर्थी ने बड़ी शालीनता से कहा कि वह घर के काम में अपनी मां का हाथ बंटाती है. किसी भी अभ्यर्थी की खेल खेलने में रूचि नहीं थी. कुछ की रूचि क्रिकेट देखने में थी पर क्रिकेट की सामान्य जानकारी भी नहीं थी.

एक अभ्यर्थी ने कहा- उसे खाना बनाने का शौक है और वह चिकेन/फिश बनाने में माहिर है. शर्माते हुए उसने बताया कि वह अभी भी अपनी पत्नी को खाना बना कर खिलाता है. एक अभ्यर्थी से जब उनके नाम का अर्थ पूछा गया, तो उनका जवाब था- नाम तो दादी ने रखा है, इसलिए वह नाम का अर्थ नहीं बता सकते. इंटरव्यू में मुझे लगा कि कोचिंग सेंटर ने छात्रों को शौक के बारे में प्रशिक्षण नहीं दिया था. अधिकांश अभ्यर्थियों को अपने विषय का अद्यतन ज्ञान एवं सामान्य ज्ञान काफी कम था. एक ने तो अंगरेजी लिटरेचर में एमए किया था, पर उसने रोमियो जूलियट को कामेडी बताया. पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन क्या है, पूछने पर जबाव था- इट इज एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ पब्लिक. भूगोल में एम पास एक अभ्यर्थी ने बताया-टुंड्रा प्रदेश में वहां के लोग तंबुओं में रहते हैं. भूगोल, श्रम एवं समाज कल्याण तथा लोक प्रशासन के लिए कौन सी पुस्तक पढ.ी? पूछने पर किसी कुंजी, गेस पेपर, गाइड, नोट्स का नाम बताया. वास्तविक पुस्तकों के नाम भी किसी ने नहीं बताया. इससे लगा कि मात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए वे पढ. रहे हैं या फिर जिन विषयों में अधिक नंबर मिलते हैं, उनका चयन कर परीक्षा पास कर रहे हैं और सरकारी सेवाओं में प्रवेश पा रहे हैं. अभ्यर्थी की मानसिकता को परखने के लिए कुछ सवाल किये गये तो रटा-रटा जवाब मिला. उदाहरण स्वरूप ‘समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास योजना का लाभ पहुंचाना,’ ‘सभी को उचित अवसर प्रदान करना’, ‘सभी के साथ उचित न्याय करना’ आदि. एक अभ्यर्थी डेयरी के व्यवसाय में थे. उनसे पूछा गया कि दूध में पानी मिलाते हैं? जवाब दिया-पानी मिलाना ही पड़ता है. ग्राहक जिस दाम का दूध चाहता है, उसी हिसाब से उन्हें पानी मिला कर दूध देते हैं. 40 रुपये में शुद्घ दूध तथा 34 रुपये में 30 प्रतिशत पानी मिला कर दूध देते हैं. यह जवाब देते समय अभ्यर्थी को न कोई झिझक थी न ही शर्म. इसे देखकर पैनल के सभी लोग अचंभित थे. यह प्रश्न दूध में पानी मिलाने का नहीं था, बल्कि इस कार्य में कुछ गलत नहीं है, इस पक्की धारणा का था.

एक अभ्यर्थी द्वारा कहा गया कि मानव विज्ञान का सिलेबस अत्यंत छोटा होता है, जिस कारण परीक्षा उत्तीर्ण करना आसान होता है. ऐसे जवाबों को प्रमाणिकता के रूप में देखा जाये या अभ्यर्थियों की लाचारी, कमजोरी एवं हमारी परीक्षा व्यवस्था की कमी, यह हमलोगों के समीक्षा से परे था. इतना महसूस हो गया था कि आने वाले दिनों में यही अभ्यर्थी हमारे प्रशासन/पुलिस के वरीय पदाधिकारी बनेंगें और उसके बाद मनरेगा/इंदिरा आवास योजना तथा अन्य विकास की योजनाओं में पानी मिलायेंगे. नागरिकों की सुविधा तथा प्रशासन की पहले से ही धूमिल छवि पर और कीचड़ उछालेंगे और यह भी समझायेंगें कि जनता को जिस दाम का प्रशासन चाहिए, वैसा ही उन्हें मिलेगा............

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